Monday, 28 October 2013

atmabodha आत्म-बोध"(Self-realization)

परिच्छन्न इवाज्ञानातन्नाशे सति केवल: |
स्वयं प्रकाशते ह्यात्मा मेघापायेतान्शुमानिव || [ आदि जगदगुरु शंकराचार्य... "आत्म-बोध" ...]

The Soul appears to be finite because of ignorance. When ignorance is destroyed the Self which does not admit of any multiplicity truly reveals itself by itself: like the Sun when the clouds pass away...
अज्ञानतावश आत्मा सीमित प्रतीत होती है... अज्ञानता के नष्ट होते ही, आत्मा जो अद्वैत है, स्वयं ही स्वयं को प्रकट कर देती है... जिस प्रकार मेघों के छटने से सूर्य प्रकट हो जाता है...

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rohit