अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये सन्निविष्टः ।
हृदा मनीषा मनसाभिक्लृप्तो य एतद् विदुरमृतास्ते भवन्ति ॥१३॥
अनुवाद- मात्र एक अंगूठे के अनुपात में वो इश्वर हर जीव के हृदये में वास करता है|जो इस सत्य को जानते है वो अपने विचारों और मन पे नियंत्रण रखते हुए उस ब्रह्म को प्राप्त होकर जन्म मरण से मुक्त हो जाते हैं |
With the size of thumb the great infinite being Purusha(Ishvara) always dwells in the heart of all creatures. Those who know this have control over their minds,emotions and thoughts,after realizing Brahman became immortal i.e freed from the cycle of birth and deaths...3.13
..................||शवेताश ्वतरोपनिषत्||............. ..............
.......Shvetashvatara Upanishads- The triad of Brahman........
Chapter 3:The Highest Reality
Mantra 13: Ishvara as the inner self of all creatures
हृदा मनीषा मनसाभिक्लृप्तो य एतद् विदुरमृतास्ते भवन्ति ॥१३॥
अनुवाद- मात्र एक अंगूठे के अनुपात में वो इश्वर हर जीव के हृदये में वास करता है|जो इस सत्य को जानते है वो अपने विचारों और मन पे नियंत्रण रखते हुए उस ब्रह्म को प्राप्त होकर जन्म मरण से मुक्त हो जाते हैं |
With the size of thumb the great infinite being Purusha(Ishvara) always dwells in the heart of all creatures. Those who know this have control over their minds,emotions and thoughts,after realizing Brahman became immortal i.e freed from the cycle of birth and deaths...3.13
..................||शवेताश
.......Shvetashvatara Upanishads- The triad of Brahman........
Chapter 3:The Highest Reality
Mantra 13: Ishvara as the inner self of all creatures
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rohit